डीआईवा नेटवर्क ||नई दिल्ली
अहोई अष्टमी का व्रत महिलाएं संतान प्राप्ति और उनकी लंबी उम्र के लिए रखती हैं। उत्तर भारत में खास तौर से यह व्रत मनाया जाता है। अहोई अष्टमी व्रत महिलाएं अपनी संतान की खुशहाली और समृद्धि के लिए किया करती है। यह पर्व करवा चौथ से ठीक चार दिन बाद यानि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी को देशभर में मनाया जाता है। इस दिन मां अपने बच्चों की लंबी उम्र और उनके बेहतर स्वास्थ्य के लिए व्रत रखती है। बता दें कि करवा चौथ की तरह ही ये व्रत भी खासतौर से उत्तर भारत में मनाया जाता है। यूपी, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश में ये व्रत खासतौर से संतान प्राप्ति और संतान की खुशहाली के लिए रखा जाता है। इस बार ये पर्व 31 अक्टूबर, 2018 यानि बुधवार को है। करवा चौथ के बाद अब महिलाएं इस व्रत की तैयारी में जुट गई होंगी। कहा जा रहा है कि इस बार शनिवार दोपहर एक बजकर 11 मिनट पर सप्तमी समाप्त होगी और उसके बाद अष्टमी लगेगी रविवार की दोपहर 12 बजकर 29 मिनट तक रहेगी। जानियें इस व्रत से जुड़ी कथा।
अहोई अष्टमी व्रत कथा
प्राचीन काल में एक साहुकार था, जिसके सात बेटे और सात बहुएं थीं। साहुकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली में ससुराल से मायके आई थी। दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं मिट्टी लाने जंगल में गईं तो ननद भी उनके साथ चली गई। साहुकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने सात बेटों से साथ रहती थी। मिट्टी काटते हुए गलती से साहूकार की बेटी की खुरपी की चोट से स्याहू का एक बच्चा मर गया। स्याहू इस पर क्रोधित हुई और उसने साहूकार की बेटी की कोख बांध दी।
स्याहू के इस तरह के श्राप से साहूकार की बेटी बड़ी दुखी हुई और अपनी सातों भाभियों से एक-एक कर विनती करती रही कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें। सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो भी गई। इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते वो सात दिन बाद मर जाते हैं। इस तरह उसके एक -एक कर सात पुत्रों की मृत्यु हो गई जिसके बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा। तब पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह उसे दी।
सुरही उसकी सेवा से प्रसन्न हो जाती है और उसे स्याहु के पास ले जाने के लिए वो निकल पड़ते हैं। रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं। अचानक साहुकार की छोटी बहू देखती है कि एक सांप गरुड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है। इतने में गरुड़ पंखनी वहां आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहू ने उसके बच्चे के मार दिया है। इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है। छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है। गरुड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है।
वहां स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहू होने का अशीर्वाद देती है। स्याहु के आशीर्वाद से छोटी बहू का घर पुत्र और पुत्र वधुओं से हरा-भरा हो जाता है।